Thursday 15 May 2014

हरियाणा में सशर्त आर्थिक प्रोत्साहन तथा महिला सशक्तिकरण

                                                                                                                                                               फोटो : जीत सिंह सन्याल

 रियाणा पिछले तीन दशकों से लगातार लिंग अनुपात में गिरावट दर्ज करता रहा है।  2011 के जनसंख्या के आंकडों के अनुसार हरियाणा का बाल लिंग अनुपात ( 0-6 वर्ष) भारत में सबसे कम है। प्रदेश का शिशु लिंग अनुपात सबसे कम होने के बावजूद पिछले एक दशक में हरियाणा का बाल लिंग अनुपात में सुधार देखने को मिला है। 2001 में यह अनुपात प्रति 1000 बालकों पर 819 बालिकाओं से सुधरकर  2011 में यह दर प्रति 1000 बालकों पर 834 बालिकाओं तक पहुंच गया है। पिछले दो दशकों में हरियाणा ने महिला बालिकाओं के सशक्तिकरण तथा उनके जन्म लेने की संभावनाओं को बढाने के उद्देश्य से कई नीतियों का निर्माण क्रियान्वयन किया। उन तमाम राजकीय नीतियों के जरिये सरकार समाज में बालिकाओं का महत्व बढाने और बालिकाओं के जन्म को लेकर सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव लाने का प्रयास करती रही है। इस व्यापक नीतिगत हस्तक्षेप के अंतर्गत राज्य सरकार द्वारा अपनायी गई तमाम रणनतियों में से एक सशर्त आर्थिक प्रोत्साहन की रणनीति है, जिसे राज्य सरकार ने विभिन्न योजनाओं के तहत प्रयोग किया।

हरियाणा सरकार ने वर्ष 1994 में अपनी बेटी अपना धन नाम से प्रथम सशर्त आर्थिक प्रोत्साहन योजना की शुरूआत की। यह योजना देश में बालिकाओं के सशक्तिकरण के लिए संचालित कुछ एक सबसे पुरानी सशर्त आर्थिक प्रोत्साहन योजनाओं में से एक है। समाज में बालिकाओं के महत्व को बढाने के लक्ष्य से संचालित यह योजना 1994 से 1998 तक संचालित की गई। इस योजना के तहत गरीब परिवार और वंचित जातियों में जन्म लेने वाली बालिकाओं के नाम पर राज्य सरकार ने 2500 रु का सेविंग बांड खरीद कर उस परिवार को दिया। इस सेविंग बांड की परिपक्वता अवधि 18 वर्ष रखी गई। बालिका के 18 वर्ष  होने पर उन्हें बांड की परिपक्वता राशि 25,000 रुपए दिये जाने का प्रावधान है, बशर्ते कि लड़की अविवाहित हो। सिन्हा और युंग ( 2010) ने एनएफएचएस के आंकड़ो के आधार पर योजना के प्रभाव पर अध्ययन करते हुए पाया कि योजना का सकारात्मक प्रभाव लड़कियों के जन्म और जीवन पर पड़ा। हालांकि, लड़कियों के जन्म को लेकर माताओं की प्राथमिकता पर योजना का निर्णायक प्रभाव नहीं पड़ा। अपनी बेटी अपना धन योजना से लाभान्वित लड़कियों का पहला बैच वर्ष 2014 में 18 वर्ष पूरा करेंगी और उन्हें बांड की राशि मिलेगी।  इस समय को ध्यान में रखते हुए नन्दा और अन्य (2014) ने इस योजना का एक और मूल्यांकन किया। मूल्यांकन के प्रारंभिक नतीजों से पता चलता है कि इस योजना से लाभान्वित लड़कियां लंबे समय तक स्कूल की शिक्षा से जुड़ी रह सकी हैं। मूल्यांकन में यह भी पाया गया कि इस योजना से लाभान्वित लड़कियां , गैर लाभान्वित लड़कियों की तुलना में ज्यादा समय तक स्कूल से जुड़ी रह सकीं।

दोनों अध्ययन यह बताते हैं कि योजना का सकारात्मक प्रभाव लाभान्वित लड़कियों के विकास पर हुआ है। लेकिन दोनों ही अध्ययनों से यह बात स्पष्ट नहीं है कि इस योजना से लड़कियों को लेकर सामाजिक सोच में कोई बदलाव हुआ है या इससे लड़कियों के जन्म दर में वृद्धि हुई है। हरियाणा सरकार ने 2005 में इसी तरह की एक नयी योजनालाड़ली योजना लागू किया। जिसका लक्ष्य लैंगिक पूर्वाग्रहों से होने वाली हानि का सामना करना था। लाडली योजना परिवार में दो लड़कियों के जन्म पालन को प्रोत्साहित करती है। योजना के तहत परिवार में दूसरी लड़की के जन्म होने के बाद पांच अलग-अलग वार्षिक किश्तों में अगले पांच साल में दोनों बालिकाओं के नाम  कुल 25000 रुपए का सेविंग बांड राज्य सरकार द्वारा प्रदान किया जाता है। इस योजना में प्रदत्त बांड की परिपक्वता अवधि 18 साल ही रखा गया। (परिवार में दूसरी लड़की के 18 साल पूरा करने पर) तथा परिपक्वता राशि तकरीबन 96,000 रुपए है। लाडली योजना की शुरुआत से अब तक कुल 183,069 परिवार योजना से लाभान्वित हुए हैं। और अभी तक राज्य सरकार  254.82 करोड़ रुपए निवेश कर चुकी है। लडली योजना की प्रभावों का आकलन अभी एक अध्ययन का विषय है, लेकिन जनगणना का हालिया आंकड़ा राज्य में लिंग अनुपात में आंशिक सुधार की उम्मीद दिखाता है।

इन दो विशेष योजनाओं के अतिरिक्त लैंगिक अनुपात में सुधार के लिए हरियाणा सरकार अनेक प्रोत्साहन योजनाओं को बालिकाओं के विकास के लिए क्रियान्वित करती रही है। राज्य शिक्षा विभाग के जरिये सामाजिक और आर्थिक रुप से वंचित तमाम स्कूल जाने वाली बालिकाओं को हर माह अलग अलग योजनाओं के तहत् छात्रवृति का प्रावधान है। सामान्यतः, इस तरह की योजना में  छात्रवृत्ति की राशि लड़कों की तुलना में लड़कियों को अधिक है। शिक्षा सशक्तिकरण का महत्वपूर्ण संकेतक है और इसीलिए हरियाणा सरकार द्वारा संचालित तमाम सशर्त आर्थिक प्रोत्साहन योजनाओं में शैक्षिक विकास एक अहम शर्त के रूप में रखा गया है। 

स्कूली शिक्षा से संबंधित आंकड़े दिखाते हैं कि हालांकि हरियाणा में माध्यमिक विद्यालयों में  लड़कियों के नामांकन में मामूली बढत दर्ज हुई है। लेकिन लड़कियों के विद्यालय छोड़ने की दर में काफी कमी आयी है। केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अनुसार, राज्य में कक्षा एक से दस तक अध्ययनरत बालिकाओं के बीच में ही स्कूल छोड़ने की दर वर्ष 2007-08 के 39.15 से घटकर वर्ष 2010-11 में 16 पर गयी है। शिक्षा के क्षेत्र में आये तमाम सकारात्मक परिणामों से स्पष्ट है कि राज्य में लड़कियों की जीवन-स्थितियों में तेजी से सुधार हो रहा है। राज्य में बेहतर स्वास्थ्य सेवा की पहुंच के कारण बालिकाओं की जीवन प्रत्याशा में भी पिछले एक दशक में सुधार हुआ है। सैंपल रजिस्ट्रीकरण प्रणाली के अनुसार, हरियाणा में बालिकाओं की बाल मृत्यु दर वर्ष 2001 में 70 से घट कर वर्ष 2012 में 44 तक पहुंच गई है।

महिलाओं के पक्ष में पिछले एक दशक में आये तमाम सकारात्मक परिणामों से स्पष्ट है कि महिलाओं बालिकाओं के सशक्तिकरण के लिए चलायी जाने वाली तमाम नीतियों से उनकी सामाजिक परिस्थितियों में सुधार हुआ है। बालिकाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य, टीकाकरण, जीवन प्रत्याशा तथा प्रजनन दर से संबंधित तमाम क्षेत्रों में प्रगति देखने को मिली है। तमाम शोध अध्ययनों ने इस बदलाव के लिए तमाम नीतिगत हस्तक्षेपों के साथ- साथ सशर्त आर्थिक प्रोत्साहन योजनाओं को भी श्रेय दिया है। लाड़ली तथा अपनी बेटी अपना धन जैसी आर्थिक प्रोत्साहन योजनाओं का मुख्य उद्देश्य सामाजिक, वैयक्तिक और सांस्कृतिक मूल्यों पर प्रभाव डालना है ताकि लैंगिक भेद-भाव का अंत हो सके। लेकिन किसी भी शोध- अध्ययन से यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि इस प्रकार की योजनओं से रूढि़वादी लैंगिक भेद-भाव संबंधी सोच में कोई अंतर आया है या इनसे महिलाओं का समाज में काई सम्मान बढ़ा है।


गिरता हुआ लिंग- अनुपात जटिल सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और संरचनात्मक व्यवस्था का परिणाम है। ऐसे में इस मुद्दे  की जटिलता को देखते हुए किसी भी नीति या योजना निर्माण उसके क्रियान्वयन में काफी सावधानी बरतने की जरूरत है। यह विषय आम जनमानस से संबंधित है और इसलिए योजना निर्माण में लोगों को विश्वास में लेने तथा क्रियान्वयन में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने से बेहतर परिणाम मिल सकते हैं। बालिकाओं के लिए संचालित सशर्त आर्थिक प्रोत्साहन योजनायें क्या लाभार्थी बालिकाओं के सामाजिक विकास के अलावा सामाजिक सोच में भी कोई परिर्वतन ला रहा है या नहीं, इसके लिए जरूरी है कि ऐसे तमाम योजनाओं का पुनरीक्षण किया जाय।
-जीत सिंह सनवाल

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